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फिर याद आ गया मुझे

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फिर याद आ गया मुझे


पहाड़ों की धुँधली तस्वीर

जंगलों में गूँजती आवाज़

झकझोर गया मन-मस्तिष्क

आखिर ! कहाँ खो गये

अस्थिर रहने वाले कदम

चुलबुली हँसी, ठहाकों की गूँज

नन्हें दीपों की जगमग रौशनी

घर से बेखबर रिश्तों से अनजान

अविकसित कोमल तन-मन

जाने कौन–सी हवा उड़ा ले गयी

हर पल की निश्छल मुस्कान |


वो ज़िन्दगी ही, ज़िन्दगी थी

जो उसके मन से गढ़ी गयी

ना दुआओं का मोहताज

ना  बद्दुआओं का डर

ठीक उस फूल की तरह

जो छूने भर से मुरझा जाते

ज़रा-सी हवा में झर जाते

सूरज की तपन में

खो देते अपना अस्तित्व |


सही-गलत के एहसास से

कोसों दूर खड़ा उसका मन

भारी चोट भरा दर्द भी

आँसुओं के साथ ख़त्म हो जाता

जाने कौन-सी राह थी

जिसकी मंजिल का पता नहीं

भला कौन-सी उम्र थी वो

जिसकी कभी कोई खता नहीं |


अब तो पहचानो मुझे !

मैं कोई और नहीं हूँ

तुम्हारा गुज़रा हुआ कल हूँ

मैं कोई झूठ नहीं, सच हूँ

इसलिए की मैं मासूम हूँ

देख रही हूँ सब कुछ

छुपी हूँ तुम्हारे पीठ पीछे

साया बन चलती हूँ तुम्हारे साथ |


मन हजारों प्रश्न लिए हुए

खड़ी-सी सामने धुँधली तस्वीर

पूछ रही विस्मित हो-होकर

क्यों ! बदल डाला मेरा एहसास

क्यों मेरी पहचान मिटा दी;

फिर भौचक मेरा वर्तमान

भरा-भरा कड़वाहट से

बस खड़ा-खड़ा ताकता रहा

मुझे कोई भनक नहीं

किसी बात की खबर नहीं

ये क्या हो गया, क्यों हो गया !


रो पड़ी अपने आप पर

मासूम-सा चेहरा लिए कह उठी

अब मैं नही हूँ ! कही नहीं हूँ !

मेरी मासूमियत छीन ली

कठोर तपती दोपहरी ने

खिलखिलाती इठलाती मुस्कान

दूर खो गयी आँधियों के साथ

और मार डाला मुझे मिलकर

निष्ठुर वर्तमान और कठोर भविष्य ने |

तड़पती रही तुमसे दूर होकर

चीखती-चिल्लाती रही

तुम अनजान बयार-सी

बढ़ती रही अपनी मंज़िल की ओर |


उसकी दर्द भरी तकलीफ़

मेरे ह्रदय को चीर गया

मन भर आया

दफनाया हुआ अतीत

आँसू भरे धार से फूट पड़ा

मैं पहचानने की कोशिश में

पीछे मुड़कर देखती हूँ

मेरे कदम के फ़ासले दूर

उसकी आँखों में ढेरों प्रश्न

मेरे पास बस ख़ामोशी बची

उसके अनगिनत सवालों में

छुपे हुए व्याकुल पुकार से

पहचान गयी अपने आप को

अपने गुज़रे हुए कल को

अपने बीते हुए बचपन को

जो हवा के एक झोकें से

फ़िर याद आ गया मुझे |

— धवालिमा भीष्मबाला

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